उत्तर प्रदेश में मेरठ से लगभग 40 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर में पांडव टीले पर बने हुए इस मंदिर में जाने के लिए जब आप इसकी सीढ़िया चढ़ रहे होंगे तो सीढ़ियां चढ़ते हुए आपको किसी पहाड़ी चढ़ाई जैसा ही अनुभव होगा जिसके बाद आप सिद्ध पीठ जयंती माता शक्ति पीठ मंदिर में पहुंचेंगे। ऊंचे टीले पर बने इस मंदिर की चढ़ाई में आपको पहाड़ों जैसी चढ़ाई का अनुभव होगा। मगर मंदिर तक पहुंचने के बाद वहां हरियाली और दूर-दूर तक पेड़ों को देखकर आपकी थकान चंद सेकंड में दूर हो जाएगी।
मंदिर में पहुंचने के बाद आपको सबसे पहले दो मठ के दर्शन होंगे। मंदिर के सामने ही एक।पुराना बरगद का पेड़ है इसके बाद मंदिर आपके सामने होगा। जहां मंदिर में घुसते ही आपको पांडवों की कुलदेवी मां जयंती देवी के दर्शन होंगे यंहा पर जयंती देवी एक पिंडी के रूप में विराजमान हैं। कहते है माता सती के 108 हिस्सों में से उनकी दाहिनी जंघा का हिस्सा यंहा पर गिरा था माता के इस हिस्से का नाम ही यंहा जयंती माता पड़ा जो।बाद में सिद्ध पीठ बन गया । जयंती माता का स्वरूप महाकाली का है। बाहर कुमुदेश्वर भैरव हैं।
जयंती माता का नाम हिंदू धर्म में बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। मंत्रों के उच्चारण और कई आरतियों में मां जयंती का सबसे पहले आहवान किया जाता है। बताया जाता है ब्रिटिश शासन काल में राजा नैन सिंह गुज्जर को स्वप्न में माता जयंती देवी ने दर्शन दिए थे जिसके बाद हस्तिनापुर में खुदाई के दौरान मां जयंती की यह पिंडी निकली थी। शुरुआत में श्रद्धालु इसे भगवान शंकर का स्वरूप समझकर पूजते रहे। मगर, पुरातत्व विभाग द्वारा इसके पांडवों की कुलदेवी मां जयंती होने की पुष्टि की गई। कहते है महाभारत कालीन सभ्यता में हस्तिनापुर के साम्रज्य की रक्षा पांडवो की कुलदेवी जयन्ती माता ही करती थी
यह मन्दिर उत्तर प्रदेश के मेरठ में मेरठ मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पांडव टीले पर स्थित है यंहा बस या टैक्सी से आराम से पहुँचा जा सकता है आप जब भी कभी हस्तिनापुर आये तो माता जयंती देवी के मंदिर जरूर जाए कहते है यंहा हर मनोकामना पूरी होती है